Shab-E-Barat Kya Hai | Full Details About Shab-e-Barat in Hindi

Shab-e-Barat 2022: आज की तारीख 18 मार्च 2022 मुसलमानों के लिए काफी अहम है। आज दुनिया भर में मुसलमान शब-ए-बरात मना रहे हैं।

शब-ए-बरात को लोग अलग-अलग नामों से जानते है जैसे कि:- Shab-e-Barat, Barat Night, Cheragh e Barat, Berat Kandili, or Nisfu Syaaban (in Southeastern Asian Muslims).

शब-ए-बरात मुसलमानों के लिए इबादत और फजीलत की रात होती है। इस रात को मुसलमान इबादत के लिए खास एहतमाम करते हैं और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। इस रात गुनाहों से खलासी की रात से भी जाना जाता है।

मुस्लिम समुदाय के बीच शब-ए-बारात वह रात मानी जाती है, जब अल्लाह ताला की अपनी बंदों की तरफ खास तवज्जो होती है।

अल्लहा के बंदों के पास यह मौका होता है, जब वह अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं साथ ही अल्लाह से उन तमाम लोगों के भी गुनाह माफ कर उन्हें जन्नत में जगह देने की दुआ करते हैं, जो दुनिया से गुजर गए हैं।

Shab-E-Barat Kya Hai

Shab e Baraat Ki Haqeekat Kya Hai? शब-ए-बरात की क्या है हकीकत?


अगर हम इंडिपेंडेंस डे मनाते हैं तो यह साफ़ है कि सिर्फ उसका मनाना ही हमारा मकसद नहीं होता, बल्कि उस दिन से जुड़ी कुर्बानियों को भी हम याद करते हैं।

इंडिपेंडेंस डे के मकसद को जेहन में रखते हुए मुल्क की तामीर व तरक्की के लिए एक्शन प्लान तय करते हैं. देश की बका के लिए अपने किरदार को और निखारने की कोशिश करते हैं।

इसी तरह इस्लामी दिनों में से चंद दिनों और रातों को भी इसलिए इतनी अहमियत दी गई है कि ये दिन और रातें दूसरे तमाम दिनों और रातों की बनिस्बत खास मकाम रखते हैं।

उन खास दिनों में से एक शब-ए-बरात भी है. ये खास दिन और रात हमें झंझोरते हैं और याद दिलाते हैं कि ये दिन और रात खालिस अल्लाह की इबादत के लिए हैं।

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Shab e Baraat Ka Matlab Kya Hai? शब-ए-बरात का मतलब क्या है?


शब-ए-बरात भी इन खास रातों और दिनों में से एक अहम रात है। बरात का मतलब है निजात और शब-ए-बरात का मतलब है गुनाहों से निजात की रात।

यानी इस रात को गुनाहों से निजात तौबा से मिलती है। ये रात मुसलमानों को उनके गुनाहों के लिए अल्लाह से माफी-तलाफी  की रात होती है।

Shab e Baraat ko Musalman Kya Karte Hain? शब-ए-बरात को क्या करते हैं मुसलमान?


शब-ए-बरात की रात को मुसलमान अपनों की कब्र पर जाते हैं और उनके हक में दुआएं मांगते है।

मर्द और औरतें, बच्चे, बूढ़े सभी लोग निफ्ल नमाजों का एहतमाम करते है।

वहीं मुसलमान औरतें इस रात घर पर रह कर ही नमाज पढ़ती हैं, कुरान की तिलावत करके अल्लाह से दुआएं मांगती हैं और अपने गुनाहों से तौबा करती हैं।

Gunahon Se Maafi Ki Raat (लोगों को उनके गुनाहों से मिलती है माफ़ी?)


इस्लामी रिवायत के मुताबिक, इस रात अल्लाह अपनी अदालत में लोगों के पाप और पुण्य का फैसला करता है और अपने बंदों के किए गए कामों का हिसाब-किताब करता है।

∆ कुरान में आता है कि इस रात में अल्लाह ताला अर्से-दुनिया पर तसरीफ ले आता है और आवाज लगाई जाती है कि है कोई अल्लाह का बंदा जो अपनी मगफिरत कराए।

है कोई बंदा जो अपने गुनाहों से पाक साफ होना चाहता।

जो लोग गुनाह करके जहन्नुम में जी रहे होते हैं, उनको भी इस दिन उनके गुनाहों की माफी देकर के जन्नत में भेज दिया जाता है।

हालांकि इस दिन अल्लाह सबको माफी देते हैं लेकिन वो लोग जो मुसलमान होकर दूसरे मुसलमान से वैमनस्य रखते हैं, दूसरों के खिलाफ साजिश करते हैं और दूसरे की जिंदगी का हक छीनते हैं उनको अल्लाह कभी माफ नहीं करता है।

Shab e Baraat Ke Roze Ki Fazilat (इस दिन रोज़े रखने की फ़ज़ीलत)


मुसलमान शब-ए-बरात के अगले दिन रोज़ा रखने का भी एहतमाम करते हैं। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बरात से इस शब-ए-बरात तक के सभी गुनाहों से माफी मिल जाती है।

लेकिन अगर रोजा ना भी रखा जाए तो गुनाह नहीं मिलता है। लेकिन रखने पर तमाम गुनाहों से माफी मिल जाती है।

Is Din Kuch Log Sajate Hain Ghar (इस दिन सजाए जाते हैं घर)


मुसलमान शब-ए-बरात के अगले दिन रोज़ा रखने का भी एहतमाम करते हैं. इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बरात से इस शब-ए-बरात तक के सभी गुनाहों से माफी मिल जाती है।

लेकिन अगर रोजा ना भी रखा जाए तो गुनाह नहीं मिलता है लेकिन रखने पर तमाम गुनाहों से माफी मिल जाती है।
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